Thursday, 12 January 2017

युवा और उनकी चुनौतियाँ........अ‍मित कुमार वर्मा/रत्नेश यादव

                                  युवा और उनकी चुनौतियाँ

Arise, awake and stop not till the goal is reached.
                        उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये
   मुश्किल जरुर है मगर ठहरा नही हूँ मैं...
                                                       मंजिल से जरा कह दो अभी पंहुचा नही हूँ मैं...!!
                
"युग युगान्तरों से भारत की ओजसव वाणी कोई अन्तिम शब्द नहीं है। वह जीवित है उसे संसार तथा मानवता को बहुत कुछ देना शेष है।”

भारत की पावन माती में,
हुए अनेकों संत l
एक उन्ही में उज्जवल तारा,
हुए विवेकानंद ll




भारतीय पुनर्जागरण के महान सेवक स्वामी विवेकानंद का जन 12 जनवरी सन 1863 में कल्केज में एक सम्मानित परिवार में हुआ था l इनकी माता आध्यात्मिकता में पूर्ण विशवास करती थी परन्तु इनके पिता स्वतंत्र विचार के गौरवपूर्ण व्यक्ति थे l इनका पहला नाम नरेन्द्रनाथ था, शारीरिक दृष्टि से नारेंद्नाथ हष्ट-पुष्ट व् शौर्यवान थे l उनका शारीरिक गठन और प्रभावशाली मुखाकृति प्रत्येक को अपनी और आकर्षित कर लेती थी l रामकृष्ण के शिष्य बन्ने से पूर्व वे कुश्ती, घुन्सेबाजी, घुड़सवारी और तैरने आदि में भी निपुणता प्राप्त कर चुके थे l उनकी वृद्धि विलक्षण थी, जो पाश्चात्य दर्शन में ढाली गयी थी l उन्होंने देकार्त, ह्य म, कांट, फाखते, स्प्नैजा, हेपिल, शौपेन्हावर, कोमट, डार्विन और मिल आदि पाश्चात्य दार्शनिको कि रचनाओं को गहनता से पढ़ा था l


” विवेकनद की प्रशंसा में "न्यूयार्क क्रिटिक" (New York Critique) ने लिखा "वे ईश्वरीय शक्ति प्राप्त वक्ता है l उनके सत्य वचनों की तुलना में उनका सुन्दर बुद्धिमत्तापूर्ण चेहरा पीले और नारंगी वस्तों में लिप्त हुआ कम आकर्षक नहीं l”

न्यूयार्क हेरोल्ड (New York Herald) ने अपने विचार प्रकट करते हुए लिखा –“विवेकानंद निश्चय ही धर्म-परिषद् में सबसे महान व्यक्ति है l उनके प्रवचन सुनने के पश्चात हम अनुभव करते है कि इस प्रकार विद्वान देश को मिशनरी भेजना हमारा कितना मूर्खतापूर्ण कार्य है l स्वामी विवेकानंद के व्याख्यानों के सार पर टिपण्णी करते हुए रोमारोला ने लिखा –“संसार में कोई भी धर्म मनुष्यता कि गरिमा को इतने ऊँचे स्वर में सामने नहीं लाता जैसा कि हिन्दू धर्म लाता है l

” प्रोफ़ेसर राईट (Prop. Wright) विवेकनद की प्रतिभा से अत्यधिक प्रभावित हुए उन्होंने लिखा - "स्वामी विवेकनद का एक ऐसा व्यक्तित्व है कि अगर इनके व्यक्तित्व कि तुलना विश्विद्यालय के समस्त प्रोफेसरों के ज्ञात एकत्र करके कि जाय तब भी वे अधिक ग्यानी सिद्ध होंगे l” स्वामी विवेकानंद ने फरवरी, 1896 में न्यूयार्क अमेरिका में वेदांत समाज (Vedanta Society) की स्थापना की l

भारतीय संस्कृति के प्रति गहन आस्था

स्वामी विवेकानंद भारतीय संस्कृति के महान पुजारी थे l उनका कथन था कि देश के बुद्धि जीवियों को पाश्चात्य संस्कृति कि चमक दमक में भारतीय संस्कृति को नहीं भूल जाना चाहिए l

सामजिक एकता पर बल 

स्वामी जी का विचार था कि भारतवासियों को अपनी एकता को बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए l यदि देशवासी ब्राह्मण, अब्राह्मण, द्रविड़-आर्य आदि विवादों में ही पड़े रहेंगे तो उनका कल्याण नहीं हो सकेगा l

कर्म करने की प्रेरणा देना

स्वामी विवेकानंद ने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण करने के पश्चात् देखा कि देश की अधिकांश निर्धन जनता अत्यंत दरिद्रता का जीवन व्यतीत करती है l उन्होंने यह भी अनुभव किया कि इस व्यापक दरिद्रता और निर्धनता का मूल कारण यहाँ के निवासियों का आलसी और भाग्यवादी होना है l

स्वामी विवेकानन्द का विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में दिया गया भाषण 
अमेरिका के बहनो और भाइयो 
आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। 
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं। 
सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। 

अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

The more we come out and do good to others, the more our hearts will be purified, and God will be in them.
हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमे बसेंगे.

They alone live, who live for others.”
बस वही जीते हैं,जो दूसरों के लिए जीते हैं.
            Serve man Serve God.
                                                            मनुष्य की सेवा करो. भगवान की सेवा करो.
मृत्यु – Swami Vivekananda Death
4 जुलाई 1902 (उनकी मृत्यु का दिन) को विवेकानंद सुबह जल्दी उठे, और बेलूर मठ के पूजा घर में पूजा करने गये और बाद में 3 घंटो तक योग भी किया। उन्होंने छात्रो को शुक्ल-यजुर-वेद, संस्कृत और योग साधना के विषय में पढाया, बाद में अपने सहशिष्यों के साथ चर्चा की और रामकृष्ण मठ में वैदिक महाविद्यालय बनाने पर विचार विमर्श किये। 7 P.M. को विवेकानंद अपने रूम में गये, और अपने शिष्य को शांति भंग करने के लिए मना किया, और 9 P.M को योगा करते समय उनकी मृत्यु हो गयी। उनके शिष्यों के अनुसार, उनकी मृत्यु का कारण उनके दिमाग में रक्तवाहिनी में दरार आने के कारन उन्हें महासमाधि प्राप्त होना है। उनके शिष्यों के अनुसार उनकी महासमाधि का कारण ब्रह्मरंधरा (योगा का एक प्रकार) था। उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया की वे 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे। बेलूर की गंगा नदी में उनके शव को चन्दन की लकडियो से अग्नि दी गयी।

संत विवेकानंद अमर तुम,
अमर तुम्हारी पवन वाणी l
तुम्हे सदा ही शीश नवाते,
भारत का प्राणी –प्राणी ll



                                                                                                      -Amit Kumar Verma/Ratnesh Yadav

                                 

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